छंद-एक परिचय
छंद क्या है ?
छंद साँचा है, विशेष पैटर्न है, नियमों से नियोजित पद्य रचना है जिसकी पहचान मात्राओं व वर्णों की गिनती, उनका क्रम, लय आदि से की जाती है | उदहारण के लिए दोहा, चौपाई, सोरठा आदि छंद हैं | छंदों के कुछ उदहारण –
- अनुष्टुप् छंद
वर्णानामर्थसङ्घानां रसानां छन्दसामपि |
मङ्गलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ || (रामचरितमानस १.१.१) - चौपाई छंद
जानहुँ रामु कुटिल करि मोही। लोग कहउ गुर साहिब द्रोही।।
सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।।
जलदु जनम भरि सुरति बिसारउ। जाचत जलु पबि पाहन डारउ।।
चातकु रटनि घटें घटि जाई। बढ़े प्रेमु सब भाँति भलाई।। (रामचरितमानस, अयोध्याकाण्ड) - दोहा
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीउ को दोउ भए एक रंग।। (अमीर खुसरो) - कुण्डलिया
पानी बाढै नाव में, घर में बाढै दाम
दोनों हाथ ऊलीचिये यही सयानो काम
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै
परमारथ के काज सीस आगे धरि दीजै
कह गिरधर कविराय बडेन की याही बानी
चलिये चाल सुचाल राखिये अपनो पानी (गिरधर कविराय)
छंद के अंग
छंद के अंग इस प्रकार हैं –
- वर्ण एवं मात्रा
लघु वर्ण – ह्रस्व स्वर (अ ,इ ,उ,,ऋ एवं चन्द्र बिंदु)और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘लघु वर्ण’ माना जाता है, उसका चिन्ह एक सीधी पाई (।) मानी जाती है।गुरु वर्ण – दीर्घ स्वर (आ ,ई ,ऊ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार ,विसर्ग) और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘गुरू वर्ण’ माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है। - चरण
छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। निम्नलिखित चौपाई में प्रथम पंक्ति एक चरण और द्वितीय पंक्ति दूसरा चरण हैं-नव बिधु बिमल तात जसु तोरा। रघुबर किंकर कुमुद चकोरा।। - यति
छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में ‘विराग’ और पद्य में ‘यति’ कहते हैं। जैसे दोहे में १३ वी मात्र पर यति होती है –
रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित इह जगत में, जान पड़े सब कोय।। (रहीमदास) - गति
छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाना ही छंद की ‘गति’ है | - तुक
पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को ‘तुक’ कहते हैं। सोरठे में पहले और तीसरे चरण के अन्त में तुक होता है, जबकि दोहे में दूसरे तथा चौथे चरणान्त में तुक होता है –सोरठा
प्रणवऊँ पवन कुमार, खल बन पावक ग्यान घन |
जासु ह्रदय आगार, बसहिं राम सर चाप धर || (रामचरितमानस)दोहा
जाइ दीख रघुबंसमनि, नरपति निपट कुसाजु |
सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि, मनहुँ बृद्ध गजराजु || (रामचरितमानस) - गण
तीन–तीन वर्णों के समूह को ‘गण’ कहते हैं। वार्णिक छंदों में गणों की गणना की जाती है | गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं : –
//नोट : गणों का स्वरुप समझने के लिए सर्वप्रथम मात्राओं की गणना सीखें//नाम स्वरूप उदाहरण सांकेतिक १ यगण ।ऽऽ वियोगी य २ मगण ऽऽऽ मायावी मा ३ तगण ऽऽ। वाचाल ता ४ रगण ऽ।ऽ बालिका रा ५ जगण ।ऽ। सयोग ज ६ भगण ऽ।। शावक भा ७ नगण ।।। कमल न ८ सगण ।।ऽ सरयू स निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –
“यमाता राजभान सलगा”
इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों के परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
‘रगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘रा’ को लिया फिर उसके आगे वाले ‘ज’ और ‘भा’ वर्णों को मिलाया। इस प्रकार ‘राज भा’ का स्वरूप ‘ऽ।ऽ’ हुआ। यही ‘रगण’ का स्वरूप है।
मात्राएँ गिनना
- अ ,इ ,उ,,ऋ एवं चन्द्र बिंदु- ये ह्रस्व स्वर अकेले आएँ या किसी व्यञ्जन के मात्र के रूप में – तब एक मात्रा गिनी जाती है (लघु)
- आ ,ई ,ऊ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार ,विसर्ग- ये दीर्घ स्वर अकेले आएँ या किसी व्यञ्जन के मात्र के रूप में – तब दो मात्राएँ गिनी जाती हैं (गुरु) |
उपर्युक्त दो नियमों के लिए उदाहरण –राम दूत अतुलित बलधामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।S I SI I I I I I I S S S I I SI I I I I I S S - यदि एक ही शब्द में लघु के तुंरत बाद संयुक्ताक्षर (दो या अधिक व्यञ्जन जिनके बीच कोई स्वर न हो) हो तो पहले आनेवाले लघु को गुरु गिना जाता है |
उदहारण –
सज्जन
S I I - छन्द के एक चरण (चौथे या आधे भाग) के अन्त में लघु को गुरु गिना जा सकता हैं यदि चरण पूरा करने के लिए आवश्यकता हो |
छंदों के प्रकार
- वार्णिक छंदवर्णगणना के आधार पर रचा गया छंद वार्णिक छंद कहलाता है ! ये दो प्रकार के होते हैं –क . साधारण – वे वार्णिक छंद जिनमें 26 वर्ण तक के चरण होते हैं !
ख . दण्डक – 26 से अधिक वर्णों वाले चरण जिस वार्णिक छंद में होते हैं उसे दण्डक कहा जाता है ! घनाक्षरी/कवित्त में 31 वर्ण होते हैं अत: यह दण्डक छंद का उदाहरण है !
कवित्त
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै………..१६ वर्ण
लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।………..१५ वर्ण
वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,……….१६ वर्ण
वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।……………१५ वर्ण
वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,………१६ वर्ण
वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।……………१५ वर्ण
आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,……….१६ वर्ण
सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।।………१५ वर्ण
-(कवि घनानंद) - मात्रिक छंद
मात्राओं की गणना पर आधारित छंद मात्रिक छंद कहलाते हैं | उदहारण -दोहाS I I I I I I S I I I I I I I I I I I S Iश्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
I I I I I I I I I I I I I S S I I I I S I
(श्री हनुमान चालीसा)
आगे हम एक एक करके छंद बनाना सीखेंगे…